Friday 5 September 2014

• बार–बार जांच क्यों –
1. घुटनों में दर्द है, एक्सरे करवाइए. 
2. पेट दुखता है, अल्ट्रासोनोग्राफी करवाइए 
3. पीठ और कमर में टीस उठती है, फुल बोड़ी स्कैन करवाइए. 
4. सिर में अक्सर दर्द रहता है, चक्कर आते है, सीटी स्कैन करवाइए.
अक्सर इस तरह के टेस्ट करवाने की सलाह डॉक्टर देते ही रहते हैं और मजबूरी में बेबस और लाचार रोगी बीमारी से निजात पाने के लिए इन्हें करवाते भी रहते हैं.
विशेषज्ञों के मुताबिक भारत में 60-70 फीसदी मेडिकल ट्रीटमेंट डायग्नोस्टिक लेबोरेटरी टेस्ट पर आधारित होता है. लेकिन बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि इस तरह की जांचों से कई बार मरीज की सेहत पर काफी असर भी पड़ सकता है.
एक बड़े डॉक्टर के अनुसार यह उनकी मजबूरी या जरूरत ही है क्योकि आज के जटिल वक्त में डॉक्टर किसी भी क़ानूनी पेचीदगी में फंसने से बचने या खुद को आश्वस्त करने के लिए पुख्ता प्रमाणों के आधार पर ही चिकित्सा ही करना चाहते हैं. इसलिए वे इलाज शुरू करने से पहले तरह-तरह की लैबोरेटरी जांचों की सलाह देते हैं और उनकी रिपोर्ट के आधार पर ही आगे बढ़ते हैं.
यह बात अलग है कि अधिकाँश जांच फ़िज़ूल की होती हैं और 30 से 50% मोटे कमीशन और गैर-जरूरी दवाइयों के उपयोग पर मिलने वाले 30% तक के कमीशन के लिए की जाती हैं. मेरे पास आने वाले कुछ लोग बड़े अभिमान से मुझे बताते हैं कि पैसा है और अगर डॉक्टर ज्यादा जांच भी करवाते हैं, तो भी हमे कोई फर्क नहीं पड़ता है.
लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि -
• बार–बार जांच यानी सेहत पर आंच
बार-बार की जाने वाली जांच से हमारे शरीर पर बहुत बुरा असर पड़ता है. इस असर का प्रभाव हमें उस समय नहीं होता है, लेकिन कुछ समय बाद जो नई-नई बीमारियाँ हमें हो जाती है, उनका सम्बन्ध इस रेडियेशन से जोड़ना असंभव सा ही है.
यह बड़े ही खेद का विषय है कि हमारे देश में कोई भी चिकित्सक एक्सरे, अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन जैसी इमेजिग जांचों के दौरान होने वाले अवांछित रेडिएशन के बुरे असर की बात मरीजों को नहीं बताते हैं.
• रेडिएशन के खतरे
एंजियोप्लास्टी और ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने के लिए की जाने वाली मैमोग्राफी में रेसिएशन की हाई डोज का प्रयोग किया जाता है जो बहुत नुकसानदायक होता है. एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड के रेडिएशन विभाग के मुखिया डॉ. ए.यु. सोनेवाने बताते हैं कि एंजियोप्लास्टी जैसे इनंटवेंशनल प्रोसीजर से गुजरने वाले मरीजों को उच्च मात्रा में रेसिएशन झेलना पड़ता है. यह प्रोसीजर की अवधि पर निर्भर करता है कि उन्हें इसकी कितनी मात्रा झेलनी पड़ती है. कुछ मामलों में मरीज को इस रेसिएशन से कैंसर भी हो सकता है. नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में जन स्वास्थ्य शोधकर्ता इंदिरा च. व्रती कहती हैं कि इमेजिंग तकनीक से मानव शरीर को एक्सरे, अल्ट्रासोनिक तरंगों और चुम्बकीय क्षेत्र के सम्पर्क में लाती हैं. कई बार बेहतर इमेज के लिए रोगी के शरीर में रसायन भी प्रवेश करवाए जाते हैं. इनके तात्कालिक और दीर्घकालिक कुप्रभाव मरीज को झेलने पड़ते हैं.
• प्रजनन क्षमता पर भी कुप्रभाव -
हमारे बच्चे तो रेडिएशन के प्रति वयस्कों से कहीं अधिक संवेदनशील होते है. कुछ अध्ययनों से पता चला है कि बच्चों में रेडिएशन का ओवर एक्सपोजर और इसकी वजह से होने वाले कैंसर का खतरा आगे चलकर उनकी प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है.
अगर आप चाहते हैं कि आप और आपके परिवार जन, बच्चे आदि इस तरह की भविष्य में होने वाली बीमारियों से बचे रहें, तो आपको चाहिए कि आप रेकी सीखिए...और भविष्य में होने वाले रोगों का इलाज खुद कीजिये....यह आपको स्वस्थ रखेगी....और बहुत से रोगों से बचायेगी.

रेकी अत्यंत सरल है...और कोई भी इसको सीख सकता है...सिर्फ एक दिन में...

संजीव जैन रेकी मास्टर
09720568758